Menu
blogid : 6583 postid : 15

बाण की हकीकत

People Foundation
People Foundation
  • 22 Posts
  • 112 Comments

एक बार इन्द्र और मरुद्गण सब मिलकर भयभीत होते हुए भगवान शंकर की शरण में गए तो भगवान शंकर ने उन आने वालों से उनके विषय में पूंछा तब देवताओ ने कहा कि बाण नाम का एक दैत्य है वह गर्वोन्मत्त दानव सदा आकाश में विचरण करता रहता है और नित्य नए – नये उत्पात करता रहता है उसके भय से सब त्रस्त होकर हम लोग आपकी शरण में आये हैं आप हम देवों के साथ – साथ यक्षों , गन्धर्वों आदि की रक्षा करने की कृपा करें शिवजी ने देवताओं को विश्वास दिलाया कि वे उनके दुःख को दूर करेंगे और उन्होंने देवर्षि नारदजी का स्मरण किया नारदजी उनका स्मरण करते ही वहां आये तो शिवजी ने उनसे कहा कि वह जायें और बाण को समझाएं कि वह देवताओं को दुखी न करें

शिवजी के वचन सुनकर उनका सन्देश लेकर नारदजी बाण के पास आये अपने आने का कारण बताया कि नैन भगवान शंकर का आदेश लेकर आया हूँ और उन्होंने कहा है कि आप देवताओं को पीड़ा न दे लेकिन बाण ने उनकी बात ध्यानपूर्वक न सुनी तब नारदजी नाराज हो गए और उन्होंने बाण कि शाकी में छिद्र करना उचित समझा उसकी पत्नियाँ उसके प्रति प्रतिव्रता और सटी थीं कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता था नारदजी वहां रहते हुए उसकी स्त्रियों और नगरी कि अन्य पतिव्रताओ का मन विचलित करने में सफल हो गए इसके बाद शिवजी का संकेत पाकर बाण के नगर पर आक्रमण कर दिया गया शिव सेना ने बहुत उत्पात मचाया , इन्द्र ने मुसलाधार वर्षा की और उसके नगरी की रूपवती स्त्रियाँ धुवें से मूर्छित होकर तिलमिलाने लगी

बाण ने देखा कि उसकी प्रजा बहुत दुखी हो रही है तो उसने आक्रमण करना चाहा लेकिन अग्नि के द्वारा फैलाये हुए धुएं वह एकदम धरती पर गिर गया अग्नि के धुएं ने उनकी व्यवस्था को इतनी बुरी तरह से अस्त व्यस्त कर दिया कि स्त्रियाँ पुरुषों पर गिरने लगीं और किसी को भी आलिंगनबद्ध करने लगीं उन्हें अपने अन्य संबंधों का भी ज्ञान नहीं रहा अग्नि के इस प्रकार के व्यवहार को देख कर बाण ने उससे कहा कि आप इस तरह का anetik कर्म न करें आप मेरी प्रजा की इस तरह से दुखी न करें तब अग्नि ने उत्तर दिया कि मैं तो आज्ञा – पालन दास हूँ मुझे शिवजी ने आदेश दिया है, मैं उसका पालन कर रहा हूँ

यह जान कर बाण नगरी से निकलकर शिवजी की सेवा में उपस्थित होकर और उन्हें प्रणाम करके बोला प्रभो ! आप यदि मुझ पर क्रुद्ध हैं और मुझे दंड देना चाहते हैं तो मुझे और मेरी नगरी को जला डालिए परन्तु मै आपके जिस लिंग की प्रतिदिन आराधना करता हूँ उसे किसी रूप में आँच नहीं पहुंचनी चाहिए यह कह कर बाण शिवजी का स्तवन करने लगा शिवजी उसके स्तवन से प्रसन्न होकर उसे अभय दिया और यह भी वरदान दिया कि देवता उसे नहीं मार सकेंगे अग्नि को भी जलाने का कार्य समाप्त करने का आदेश दिया इसके उपरांत बाण ने ज्वालेश्वर महादेव की स्थापना की और नियमित रूप से उनकी पूजा करने लगा

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply