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पूर्णभद्र के पुत्र की तपस्या

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यक्ष पूर्णभद्र भगवान महादेव हमेशा चिंतन – स्मरण में लीं रहते थे किन्तु उनके साथ ही पूर्णभद्र का एक राक्षस वृत्ति वाला बालक था वह हमेशा शिवजी में विचार न करके दुष्ट कर्म करता था पहले तो उसके पिता ने उसके दुष्ट कर्मों को देख कर उसे सुधारने की कोशिश की पर जब वह नहीं मन तो उसे अपने घर से निकल दिया वह बालक इधर – उधर घूमता हुआ वाराणसी में आ गया और वहा उसने अपनी भावनाओं को संयमित और इन्द्रियों को संयत करके घोर तप किया वह तप करने में इतना लीन हो गया कि उसके ऊपर रेत का टीला बन गया चींटियों ने उसे खाना शुरू कर दिया और धीरे – धीरे वह केवल हड्डियों का ढांचा रह गया उसके इस तरह तपस्यारत होते – होते पार्वतीजी शिव के साथ उस बगीचे में आई शिवजी ने वाराणसी क्षेत्र की प्रशंसा की और उसकी महिमा भी अभिव्यक्त की
उन्होंने कहा, ‘यहाँ पर आकर सभी प्राणी पापमुक्त हो जाते हैं ‘
शिवजी के मुंह से वाराणसी का महत्व सुनने के बाद पार्वती ने उस बालक की ओर शिवजी का ध्यान दिलाया तब शिवजी ने कहा कि चलो इसके पाप नस्ट हो गए हैं, में इसे दर्शन देता हूँ जैसे ही शिव और पार्वती उस बालक के पास पहुंचे तो वह यक्ष बालक बहुत प्रसन्न हुआ और उन्होंने उसकी प्रसन्नता तथा वंदना से प्रसन्ना होकर वर मांगने के लिए कहा उसने उनकी भक्ती का हि वरदान माँगा शिवजी ने प्रसन्न हो कर उसे गणेश्वर लोकपाल का पद देकर अपने लोक भेज दिया

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